Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां
- भारत विभाजन के बारे मे निम्नलिखित कौन सा कथन गलत है ?
क) भारत विभाजन द्वि- राष्ट्र सिद्धांत का परिणाम था।
ख) धर्म के आधार पर दो प्रान्तों पंजाब और बंगाल का बंटवारा हुआ।
ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नही थी।
घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला बदली होगी।
उत्तर ( घ)
2. निम्नलिखित सिद्धांत के साथ उचित उदाहरण को मेल करें:
क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण
उत्तर भारत और पाकिस्तान
ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण
उत्तर पाकिस्तान और बांग्लादेश
ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन
उत्तर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन
उत्तर झारखंड और छत्तीसगढ़
4. नीचे दो तरह की राय लिखी गई है :
विस्मय : रियासतों को भरतोय संघ में मिलने से इन रियासतों को प्रजा तक लोकतंत्र का विस्तार हुआ।
इंदरप्रीत: यह बात मैं दावे के साथ नही कह सकता । इसमे बलप्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतंत्र में आम सहमती से काम लिया जाता है।
देशी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है ?
उत्तर
इस बात में पूर्ण सच्चाई है कि देशी रियासतों को भारतीय संघ में मिलने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतंत्र का विस्तार हुआ अर्थात इन रियासतों के लोग अब स्वयम अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने लगे तथा उन्हें अपने विचारव्यक्त करने तथा सरकार की आलोचना का भी आधिकारहो गया | यद्दपि कुछ रियासतों को भारत में मिलने के लिए कुछ बल प्रयोग किया गया, परन्तु तात्कालिक परिस्थितियों में इन रियासतों पर बल प्रयोग करना आवश्यक था, क्योंकिइन रियासतों ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया थातथा इनकी भौगोलिक स्थिति ऐसी थी, कि इससे भारत कीएकता एवं अखण्डता को सदैव खतरा बना रहता |
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जो बल प्रयोग किया गया, वह इन रियासतों की जनता के विरुद्द किया गया, और जब ये देशी रियासते भारत में शामिल हो गई, तब इन रियासतों के लोगो को भी सभी लोकतान्त्रिक अधिकार प्रदान कर दिए।
5. नीचे 1947 के अगस्त के कुछ बयान दिए गए हैं जो अपनी प्रकृति में अत्यंत भिन्न है :
आज आपने अपने सर पर काँटों का ताज पहना है। सत्ता का आसन एक चीज है। इस आसन पर आपको सचेत रहना होगा….आपको और ज्यादा विनम्र और धैर्यवान बनना होगा । अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी।
-मोहनदास करमचंद गांधी
…भारत आजादी की जिंदगी के लिए जागेगा….हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाएंगे …आज दुर्भाग्य के एक नए दौर का खात्मा होगा और हिंदुस्तान अपने को फिर से पा लेंगे ..आज हम जो जश्न मना रहे वह एक कदम भर है, संभावना के द्वार खुल रहे हैं….
-जवाहर लाल नेहरू
इन दोनों बयानों से राष्ट्रीय निर्माण का जो एजेंडा ध्वनित होता है उसे लिखिए । आपको कौन सा एजेंडा जंच रहा है और क्यों?
उत्तर – ये दो वक्तव्य धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, संप्रभुता और स्वतंत्रता के एजेंडे पर केंद्रित हैं। यह उस मार्ग पर केंद्रित है जो हमारे देश के वास्तविक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देगा। पहला बयान मुझे दूसरे से अधिक अपील करता है क्योंकि यह देशवासियों को जागृत, सतर्क और सचेत रहने के लिए आमंत्रित करता है क्योंकि यह हमारे संघर्ष का अंत नहीं है। राष्ट्र के निर्माण का समय अब
6. भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तर्कों का इस्तेमाल किया । क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा ईनमे कोई तर्क युक्तिपूर्वक भी है ?
उत्तर
पं जवाहर लाल नेहरु जीवन की समस्याओं के प्रति हमेशा धर्म-निरपेक्ष दृष्टीकोण रखते थे | उनकी मानसिक प्रवृति
वैज्ञानिक थी | उन्होंने अनेक प्रथाओं तथा परम्पराओं का विरोध किया था | वह धर्म को राजनीती से दूर रखना चाहते थे वह प्रजातंत्र को तभी सफल कहते थे जब उसका आधार धर्म-निरपेक्षता हो | उन्हें रहस्यवाद से चिढ थी क्योंकि उसे वह
अस्पष्ट तथा परलौकिक समजते थे | उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक तथा यथार्थवादी था | उन्होंने आध्यात्मिक विषयों
जैसे आत्मा व जीवन-मृत्यु आदि को महत्व की दृष्टी से नहीं देखा था | उनकी धर्म-निरपेक्षता के प्रति गहन निष्ठा थी।
उनका विचार था कि राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नही होना चाहिए, न ही उसे किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहित
करना चाहिए और न ही उसका विरोध करना चाहिए | राज्य को सभी धर्मों के साथ समान व्यवाहर करना चाहिए और
सभी धर्मो को उनके क्षेत्र से पूर्ण स्वतंत्रता देनी चाहिए | अपनी आत्मकथा में वे लिखते हैं :- धर्म, विशेषत: एक
संगठित धर्म, का जो रूप मै भारत में तथा अन्यत्र देखता हु वह मुझे भयभीत कर देता है, मैं प्रायः उसकी निंदा करता
हूँ, और इसका उन्मूलन कर देना चाहता हूँ | धर्म ने सदैव अन्धविश्वास, मतान्धता, प्रतिक्रियावाद, शोषण तथा निहित स्वार्थो को पुष्ट किया जाता है । धर्म-निरपेक्षता पर विचार प्रकट करते हुए अपने एक भाषण में नेहरु जी ने कहा था कि
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, इसका अर्थ धर्महीनता नहीं इसका अर्थ सभी धर्मो के प्रति समान आदर- भाव तथा
सभी व्यक्तियों के लिए समान अवसर है – चाहे कोई भी व्यक्ति किसी धर्म का अनुयायी क्यों न हो | इसलिए हमे अपने
दिमाग, अपनी संस्कृति के आदर्शमय पहलू को ही सदा दिमाग में रखना चाहिए जिसका आज के भारत में सबसे महत्व है ।