सिंधु सभ्यता के पतन के बाद जो संस्कृति भारत में पनपी उसके विषय मे जानकारी का मूल आधार वेद है, इसलिए यह काल vedic civilization वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है, और इसके उत्पत्ति करता अपने आप को आर्य कहते थे ।
इसलिए इसे आर्य संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है। आर्य का शाब्दिक अर्थ है श्रेष्ठ, कुलीन, आदरणीय आदि है।
Vedic Civilization वैदिक सभ्यता को दो भागों में बांटा जा सकता है
1.ऋग्वेदिक काल जो 1500 से 1000 ईशा पूर्व तक है और
2. लगभग 1000 से 600 ईशा पूर्व के काल उत्तरवैदिक काल कहा जाता है।
आर्यों के उत्पत्ति करता के विषय मे तीन मत हैं
1.पहला वर्ग आर्यों को यूरोप का मूल निवासी बताता है,
2.दूसरा वर्ग आर्यों का मूल निवास एशिया को बतलाता है जबकी
3. तीसरा वर्ग आर्यों का मूल निवास आर्कटिक को मानता है।
यह मत बाल गंगाधर तिलक द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक the Arctic Home in the Veda में उत्तरी ध्रुव को आर्यों का मूल निवास स्थान माना है।
सामान्यतः भारतीय विद्वानों का कहना है कि आर्यों का मूल निवास-स्थान भारत था तथा यहाँ से आर्य लोग विश्व के विभिन्न भागों में गये।
दूसरी तरफ विदेशी विद्वानों का कहना है कि आर्यों का मूल निवास-स्थान मध्य एशिया था तथा वहाँ से आर्य लोग ईरान होते हुए भारत पहुंचे। आर्यों के मूल निवास स्थान के प्रश्न को लेकर विद्वानों में मतभेद का सर्वप्रमुख कारण यह है, कि विद्वानों की दृष्टि वस्तुनिष्ठ न होकर आत्मनिष्ठ रही है।
जिस किसी विद्वान ने इस प्रश्न का हल ढूँढ़ने का प्रयास किया है, उसका ध्यान इस बात पर रहा है कि उसी का देश आर्यों का आदि देश प्रमाणित हो। मनुष्य की यह स्वाभाविक कमजोरी है कि वह अपने को या अपने से संबद्ध को, गौरव एवं श्रेय का
अधिकारी बनाना चाहता है।
वस्तुनिष्ठ दृष्टि से देखें तो आर्यों का मूल निवास-स्थान मध्य
एशिया ठहरता है। यही सर्वाधिक मान्य मत है। एशिया माइनर (तुर्की) से प्राप्त बोगाजकोई अभिलेख [जर्मन पुरातत्वविद् ह्युगो विकलर (Hugo Winckler) द्वारा 1906 ई. में खोजा गया अभिलेख] ।जिसमें चार वैदिक देवताओं इन्द्र, मित्र, वरुण व नासत्स्य का उल्लेख मिलता है, से आर्यों के मूल निवास-स्थान संबंधी मध्य एशिया सिद्धांत की पुष्टि होती है।
मध्य एशिया सिद्धांत के अनुसार, आर्यों का मूल निवासस्थान मध्य एशिया था। आर्य अपने मूल स्थान से जनसंख्या की वृद्धि या चारागाहों के सूख जाने के कारण अथवा दोनों ही कारणों से प्रस्थान के लिए तैयार हो गये। वहाँ से चलकर वे ईरान पहुँचे। यहाँ आर्य दो शाखाओं में बँट गए ‘ एक वे जो ईरान में रह गए और दूसरे वे जो भारत की ओर बढ़ गए।
भारत मे आर्यों का आगमन 2000 ईशा पूर्व से 1500 ईशा पूर्व के बीच कई खेपों में हुआ।भारत मे आने वाले आर्य सबसे पहले अफ़ग़ानिस्तान के सीमांत प्रान्त एवं पंजाब में बसे ,जो उस समय सप्तसैंधाव प्रदेश कहलाता था । सप्तसैंधाव का अर्थ है सात नदियों का देश।
ब्राह्मण ग्रंथ
ब्राह्मण ग्रंथ के अंतर्गत आते हैं (i) श्रुति ग्रंथ :संहिता या वेद, ब्राह्मण,
आरण्यक एवं उपनिषद्।
(ii) स्मृति ग्रंथ : वेदांग या सूत्र, स्मृति, महाकाव्य (रामायण व महाभारत)
एवं पुराण ।
संहिता या वेदों की संख्या चार हैं— ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद ।
वेदों में ऋग्वेद सर्वाधिक प्राचीन है इसमें 10 मण्डल, 1028 सूक्त हैं तथा
10,580 ऋचाएं हैं. इस ग्रन्थ से प्राचीन आर्यों के सामाजिक, आर्थिक तथा
राजनीतिक जीवन के विषय में विशद जानकारी प्राप्त होती है. उदाहरणार्थ
ऋग्वेद के दो सूक्तों में राजा सुदास के विरुद्ध दस राजाओं के संगठन का वर्णन
किया गया है.
यजुर्वेद में 40 अध्याय तथा लगभग दो हजार मन्त्र हैं। इस ग्रन्थ
से तत्कालीन भारत के सामाजिक एवं धार्मिक पक्ष की जानकारी प्राप्त होती है.
सामवेद में 1,549 अथवा 1,810 श्लोक हैं. इन श्लोकों को यज्ञ के अवसर पर
गाया जाता था यह ग्रन्थ तत्कालीन भारत की गायन विद्या का श्रेष्ठ उदाहरण
प्रस्तुत करता है.
अथर्ववेद में 20 मण्डल, 731 ऋचाएं तथा 5,839 मन्त्र हैं,
इस ग्रन्थ से उत्तर वैदिककालीन भारत की पारिवारिक, सामाजिक तथा
राजनीतिक जीवन की विशद जानकारी प्राप्त होती है. इसके अधिकांश मन्त्र
आयुर्वेद से सम्बन्धित हैं, जिनमें अनेक रोगों से बचने के लिए औषधियों साँप
के विष को दूर करने तथा जादू-टोने से सम्बन्धित मंत्रों का उल्लेख है.
डॉ आर सी मजूमदार ने इस वेद के विषय में लिखा है कि “इसमें वशीकरण,
जादू तथा मानसहरणों का वर्णन है जिनसे राक्षसों तथा शत्रुओं पर विजय
पाई जा सकती है, मित्रों को जीता जा सकता है और भौतिक सफलताएं
प्राप्त की जा सकती हैं.”।
उपनिषद
ऋग्वेद के दो उपनिषद हैं कौषीतकि एवं ऐतरेय।
यजुर्वेद के उपनिषदों के नाम हैं वृहदारण्यक, तैत्तिरीय, कठोपनिषद, श्वेताश्वर, ईशोपनिषद, महानारायण उपनिषद।
केन , छांदयोग तथा जैमिनीय सामवेद के उपनिषद हैं।
मांडूक्य, प्रश्न और मुंडक ये सभी अथर्वेद के उपनिषद हैं।
वेदों से संबंधित उनके भाग और पुरोहितों के नाम इस प्रकार है।
भाग
ऋग्वेद के तीन भाग हैं वाष्कल , बालखिल्य, और शाकल। ऋग्वेद की स्तुति करने वाले पुरोहित को होत्री कहा जाता है।
ऋग्वेद की विषयवस्तु देवताओं की स्तूतियाँ हैं।
यजुर्वेद दो प्रकार के हैं। शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। शुक्ल यजुर्वेद के दो भाग हैं काण्व और मद्यदिन। कृष्ण यजुर्वेद के चार भाग है काठक, कपिष्टक, मैत्रायणी और तैत्तरिय ।यजुर्वेद के पुरोहित को अध्वर्यु कहा जाता है । इसकी विषयवस्तु यागयिक कर्मकांड या बलिदान प्रथा है।
सामवेद के तीन भाग हैं कीथुम, रानायनी और जैमनीय। सामवेद के जाप करनेवाले पुरोहित को उद्गाता कहते हैं। सामवेद की विषयवस्तु संगीत या गायन विद्या है।
अथर्वेद के दो भाग है शौनक और पिप्पनाद।अथर्वेद की जाप करनेवाले पुरोहित को ब्रह्मा अथवा ब्राह्मण कहा जाता है। अथर्वेद की विषयवस्तु जादू, टोना, भूत, वशीकरण और औषधियां है।
उपवेद
उपर्युक्त वर्णित प्रत्येक वेद का एकएक उपवेद है. आयुर्वेद, ऋग्वेद का
उपवेद है इसमें चिकित्सा सम्बन्धी विशेष तथ्यों का उल्लेख मिलता है.
धनुर्वेद, यजुर्वेद का उपवेद इसमें शस्त्र प्रयोग तथा संहार शिक्षा का उल्लेख
मिलता है. गन्धर्ववेद, सामवेद का उपवेद है इसमें संगीत, गायन, नृत्य आदि
विद्या का उल्लेख मिलता है. शिल्पवेद, अथर्ववेद का उपवेद है इसमें
वास्तुकला तथा अन्य कुछ कलाओं का वर्णन मिलता है.।
वेदांग-इनकी रचना वैदिक काल के अन्त में हुई. ये वेदों के ही अंग हैं
इनकी संख्या 6 है. ये वेदांग हैं-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद
और ज्योतिष.
ब्राह्मण ग्रन्थ-
ऋषियों द्वारा गद्य में वेदों की, की गई सरल व्याख्या को
ब्राह्मण ग्रन्थ कहा जाता है. प्रत्येक वेद के अपने ब्राह्मण ग्रन्थ हैं.
कौषीतकी तथा एतरेय ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ हैं. एतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ
में विभिन्न प्रकार के राज्याभिषेक उत्सव तथा वैदिक काल के कुछ
राजाओं का विवरण दिया हुआ है. तैतरीय, कृष्ण यजुर्वेद का, शतपथ,
शुक्ल यजुर्वेद का ताण्डव, पंचविश तथा जैमनीय सामवेद का तथा
गोपथ अथर्ववेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है. इन ब्राह्मण ग्रन्थों से तत्कालीन
लोगों की सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक जीवन की विशद
जानकारी प्राप्त होती है.
उपवेद
उपर्युक्त वर्णित प्रत्येक वेद का एकएक उपवेद है. आयुर्वेद, ऋग्वेद का
उपवेद है इसमें चिकित्सा सम्बन्धी विशेष तथ्यों का उल्लेख मिलता है.
धनुर्वेद, यजुर्वेद का उपवेद इसमें शस्त्र प्रयोग तथा संहार शिक्षा का उल्लेख
मिलता है. गन्धर्ववेद, सामवेद का उपवेद है इसमें संगीत, गायन, नृत्य आदि
विद्या का उल्लेख मिलता है. शिल्पवेद, अथर्ववेद का उपवेद है इसमें
वास्तुकला तथा अन्य कुछ कलाओं का वर्णन मिलता है.
वेदांग
वेदांग-इनकी रचना वैदिक काल के अन्त में हुई. ये वेदों के ही अंग हैं
इनकी संख्या 6 है. ये वेदांग हैं-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद
और ज्योतिष.
ब्रह्मण ग्रंथ
ब्राह्मण ग्रन्थ- ऋषियों द्वारा गद्य में वेदों की, की गई सरल व्याख्या को
ब्राह्मण ग्रन्थ कहा जाता है. प्रत्येक वेद के अपने ब्राह्मण ग्रन्थ हैं.
कौषीतकी तथा एतरेय ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ हैं. एतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ
में विभिन्न प्रकार के राज्याभिषेक उत्सव तथा वैदिक काल के कुछ
राजाओं का विवरण दिया हुआ है. तैतरीय, कृष्ण यजुर्वेद का, शतपथ,
शुक्ल यजुर्वेद का ताण्डव, पंचविश तथा जैमनीय सामवेद का तथा
गोपथ अथर्ववेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है. इन ब्राह्मण ग्रन्थों से तत्कालीन
लोगों की सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक जीवन की विशद
जानकारी प्राप्त होती है.
आरण्यक
आरण्यक-ब्राह्मणों के पश्चात आरण्यकों का स्थान आता है. इनकी
रचना बाद में हुई. ये भी एक प्रकार के ग्रन्थ हैं. इनमें आत्मा, मृत्यु
तथा जीवन सम्बन्धी विषयों का वर्णन किया गया है. चूँकि इनका
पठनपाठन वानप्रस्थी, मुनि तथा वनवासियों द्वारा वन में (जिसका
अर्थ अरण्य होता है) किया जाता है. इसलिए इन ग्रन्थों को आरण्यक
के नाम से जाना जाता है. कौषीतकी और एतरेय ऋग्वेद के तैत्तरीय
कृष्ण यजुर्वेद के आरण्यक हैं. सामवेद तथा अथर्ववेद का कोई आरण्यक नहीं है.